
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्त करने की मंजूरी दे दी है. वे 14 मई 2025 को पद की शपथ लेंगे और वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का स्थान लेंगे.
यह जानकारी कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा की. उन्होंने बताया कि यह नियुक्ति भारतीय संविधान में निहित शक्तियों के तहत की गई है.
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई
जस्टिस गवई वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं और वे इस सर्वोच्च पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश होंगे. उनसे पहले जस्टिस के.जी. बालकृष्णन ने यह जिम्मेदारी निभाई थी.
24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई महाराष्ट्र से आते हैं. उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की थी और 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बने. इसके बाद उन्हें मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया. अपने न्यायिक करियर में उन्होंने कई अहम और संवैधानिक मामलों में फैसले दिए हैं, जो उनकी कानूनी समझ और निष्पक्षता को दर्शाते हैं.
उनका शपथ ग्रहण समारोह 14 मई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया जाएगा, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी.
ऐतिहासिक निर्णयों में रही भागीदारी
जस्टिस बी. आर. गवई उन पांच न्यायाधीशों की पीठ में शामिल थे, जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के 2019 के अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को बरकरार रखा था. यह निर्णय जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को समाप्त करने से जुड़ा था.
वह उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया. इसके अलावा, 2016 की नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार के फैसले को भी उन्होंने 4:1 बहुमत वाले निर्णय में वैध ठहराया.
आरक्षण पर सुनाया था बड़ा फैसला
एक और महत्वपूर्ण फैसले में, जस्टिस गवई सात सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत से यह निर्णय दिया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों के भीतर अति-पिछड़ों के लिए उप-वर्गीकरण कर सकती हैं.
‘लोग न्याय के लिए भीड़ बन सकते हैं’
जस्टिस बी. आर. गवई ने पिछले वर्ष 19 अक्टूबर को अहमदाबाद, गुजरात में न्यायिक अधिकारियों के वार्षिक सम्मेलन में महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि अगर जनता का न्यायपालिका से भरोसा उठ गया, तो वे भीड़ के न्याय और भ्रष्ट तरीकों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे कानून-व्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा.
जस्टिस गवई ने जोर देकर कहा था कि एक जज का पद पर रहते हुए किसी राजनेता या नौकरशाह की सार्वजनिक प्रशंसा करना, भले ही वह शिष्टाचार के दायरे में न हो, न्यायपालिका की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है. ऐसे व्यवहार से लोगों का भरोसा पूरी न्याय व्यवस्था से डगमगा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई जज चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है, तो यह कदम भी जनता की नजर में न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता की धारणा को प्रभावित कर सकता है.
जस्टिस गवई के अनुसार, न्यायिक नैतिकता और व्यक्तिगत ईमानदारी ही न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता के दो प्रमुख आधार स्तंभ हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लोगों को अदालतों से न्याय नहीं मिला, या उनका विश्वास डगमगाया, तो वे वैकल्पिक और अवैध रास्तों-जैसे भीड़ का न्याय या भ्रष्टाचार की ओर मुड़ सकते हैं, जो समाज में अराजकता फैला सकता है.
उनकी इस चेतावनी को न केवल न्यायिक प्रणाली के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में देखा गया, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक चेतावनी भी है कि न्यायपालिका में विश्वास बनाए रखना कितना आवश्यक है.
जस्टिस बी. आर. गवई का अब तक का कार्यकाल न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है, और उनके CJI बनने से देश की न्यायपालिका को नई दिशा मिलेगी.