
राजस्थान के भरतपुर जिले के पीलूपूरा गांव में एक खास झोपड़ी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. इस भीषण गर्मी में जब शहरों में लोग एसी और कूलर की ठंडी हवा खोजते हैं तब यह झोपड़ी इतनी ठंडी रहती है कि एसी को भी मात दे देती है. देसी तरीके से बनी यह झोपड़ी ग्रामीण नवाचार और देसी वास्तुकला का अनूठा उदाहरण बन है. पीलूपूरा गांव में स्थित इस झोपड़ी को वीआईपी झोपड़ी या देसी झोपड़ी के नाम से भी जाना जाता है.
झोपडी मालिक लेखराज मीणा ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए बताया कि इस वीआईपी झोपड़ी को बनाने में खेतों की खरपतवार, देसी लकड़ी, मिट्टी और अन्य पारंपरिक सामग्रियों का उपयोग किया गया है. इसके निर्माण में लगभग 5 से 6 लाख रुपये की लागत आई है. उन्होंने बताया कि पैसा इतना जरूर लग गया लेकिन इसका परिणाम बेहद शानदार है. झोपड़ी की दीवारें इतनी ठंडी रहती हैं कि हाथ लगाने पर चिल्ड का अहसास होता है. अंदर का तापमान बाहर की गर्मी की तुलना में काफी कम बना रहता है.
यह झोपड़ी केवल जरूरत नहीं बल्कि अब गांव वालों के लिए स्टाइल और शौक का प्रतीक भी बन गई है. लोग इसे अपने विश्रामगृह की तरह इस्तेमाल करते हैं और गर्मी से बचने के लिए इसमें समय बिताते हैं. इसका देसी ठाट और ठंडक इसे खास बनाती है. यह झोपड़ी केवल एक ठिकाना भर नहीं बल्कि देखने आने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र भी बन चुकी है.
आसपास के गांवों और शहरों से लोग इसे देखने आते हैं और इसकी बनावट को समझने की कोशिश करते हैं. यह झोपड़ी ग्रामीण जीवन में स्वदेशी तकनीक और रचनात्मक सोच का मिसाल बन गई है. यह पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ ही गर्मियों में ठंडक देने का भी काम करती है.